मुरादाबाद।प्रकृति सेवा समिति ट्रस्ट मुरादाबाद (रजि.) द्वारा कछुआ संरक्षण की मुहिम के तहत भारतीय स्टार कछुए को अमृत सरोवर काजीपुरा में छोड़ा गया। इस दौरान एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। जिसमें कछुओं के महत्व पर प्रकाश डाला गया।
दरअसल वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार कछुये या सरीसृप को पालन करना अवैध है। इसके लिए प्रकृति सेवा समिति ने मुहिम चलाई है। बुधवार को कुछ महिलाओं द्वारा कछुए को पकड़कर अपने घर की तरफ ले जाया जा रहा था। इसी दौरान प्रकृति सेवा समिति के संस्थापक/महासचिव पर्यावरण सचेतक नैपालसिंह पाल ब्रांड एम्बेसडर नगर निगम की निगाह एक महिला के हाथ में ली हुई जूट के थैले पर गई उन्होंने उस थैले में कुछ हलचल सी लगी तो तुरंत उन महिलाओ के पास गए और उस जूट की थैली को खोल दिखाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया जूट के थैले में हो रही हलचल से उन्हें जूट थैले में कछुआ होने का अंदेशा हुआ था महिलाओ ने बहुत कहने के बाद थैली दिखाई उनकी नज़र कछुए पर पड़ी । कछुये को उन महिलाओं को छोड़ने के लिए कहा गया तो एक महिला ने मना कर दिया तब उन महिलाओं को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के विषय मे बताया गया और उन्हें बताया गया कि कछुआ एक जलीय जीव है और उसका घर में पालन कानूनन अपराध है। तब बड़ी मुश्किल में उन्होंने उस भारतीय स्टार कछुये को वही छोड़ दिया गया। जिसके बाद नगर निगम की सहयोगी संस्था एआईआईएलएसजी टीम के साथ मिलकर द्वारा कछुए को अमृत सरोवर काजीपुरा में छोड़ा गया। जंहा छोड़ते ही भारतीय स्टार कछुआ तालाब में आराम से चला गया। इस दौरान एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। इस प्रकृति सेवा समिति के संस्थापक/महासचिव पर्यावरण सचेतक नैपालसिंह पाल ब्रांड एम्बेसडर नगर निगम ने कहा कि प्रकृति पर्यावरण में प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए प्रत्येक जीव का विशेष महत्व है। कछुआ पारिस्थितिकी तंत्र में अपमार्जक (क्लीनर) के रूप में जाना जाता है। कछुआ तालाब , नदी , झील एवं नदी किनारे पड़े गंदगी , मृत जानवरों के अवशेषों को खाकर प्रकृति को स्वच्छ बनाए रखता है।
प्रकृति सेवा समिति के कोषाध्यक्ष/मीडिया प्राभारी शुभम कश्यप ने कहा कि कछुए को तालाब/रिवर का सफाईकर्मी कहा जाता है। कछुए दो तरह के होते हैं। एक हार्ड और दूसरे शॉफ्ट । हार्ड कछुए शाकाहारी होते हैं। ये कवई, घास व अन्य गंदगी को खाकर साफ कर देते हैं। इसके अलावा साफ्ट कछुए मांसाहारी होते हैं। ये सड़ी-गले मांस को खाकर साफ कर देते हैं। कछुआ कई किलोमीटर तक माइग्रेट भी करता है। जिससे ये काफी दूर तक सफाई कर सकते हैं। लेकिन आज बढ़ते प्रदूषण और मनुष्य के निजी स्वार्थों के कारण कछुए की कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर है। जिसके लिए हम सभी को सजग रहना होगा। इस दौरान अरुण कुमार, उमाशंकर सैनी, राजू सिंह आदि स्थानीय बच्चे मौजूद रहे ।