Moradabad..माँ पीताम्बरा बगलामुखी देवी महायज्ञ एव श्री भक्तमाल कथा में प्रातः कालीन सत्र में श्री अष्ट लक्ष्मी मंगला गौरी यज्ञ हुआ जिसमे मुख्य यजमान अंरविद अग्रवाल मंयक यादव कृष्ण गोपाल शर्मा प्रशांत सक्सेना नवनीत पाठक अंकित अग्रवाल अतुल सोती रहे। अनुष्ठान श्री परिवार पीठाधीश्वर प॰ कृष्णा स्वामी जी के निर्देशन में आचार्य कामेश्वर मिश्र ने कराया ।संध्या क़ालीन सत्र में श्री धाम मथुरा से पधारे पंडित नंद किशोर पाण्डेय जी महाराज ने कहा कि
परीक्षित अर्जुन के पौत्र अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता थे। जब ये गर्भ में थे तब अश्वत्थामा ने ब्रम्हशिर अस्त्र से परीक्षित को मारने का प्रयत्न किया था । ब्रम्हशिर अस्त्र का संबंध भी भगवान ब्रम्हा से है तथा ब्रम्हा के ही महान अस्त्र ब्रह्मास्त्र के समान शक्तिशाली, अचूक और घातक कहा गया है। इस घटना के बाद योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योगबल से उत्तरा के मृत पुत्र को पुनः जीवित कर दिया था । महाभारत के अनुसार कुरुवंश के परिक्षीण होने पर जन्म होने से वे ‘परीक्षित’ कहलाए।
उन्होंने भक्त प्रहलाद की कथा को विस्तार से सुनाते हुए कहा कि भगवान सदा ही अपने भक्तों का पूरा ध्यान रखते हैं और समय आने पर वह स्वयं प्रकट होकर भक्त का उद्धार करते हैं। भगवान ने जब भक्त प्रहलाद से कहा कि तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद यहां से सारे संसारी जा चुके हैं फिर तुम्हें भय क्यों नहीं लग रहा है, तब भक्त प्रहलाद ने कहा कि जिस तरह से शेर की दहाड़ से जंगल के सारे पशु पक्षी भाग जाते हैं लेकिन उसके छोटे से बच्चे को भी जंगल में भय नहीं लगता है, उसी तरह मुझे भी प्रभु कृपा प्राप्त होने के बाद किसी भी प्रकार का सांसारिक भय नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उन्होंने जन्म से लेकर उनकी बाल लीलाओं के बारे में भी कथा के माध्यम से बताया है।
परमात्मा अपने भक्तों के ह्दय में निवास करते हैं। मगर आवश्यक है हम अपने ह्दय को अत्यंत पवित्र व शुद्ध रखें। मलीन ह्दय प्रभु का स्थान नहीं बन सकता। समूची भक्ति का उद्देश्य भी यही है कि हम अपने अन्त:करण की शुद्धि करें। नित्य का अभ्यास से ही ह्दय की शुद्धि कर सकती है। उन्होंने कहा कि इस मन में द्वेष, ईर्षा कामनाओं, असंतोष, कपट, छल, क्रोध, चतुराई, कठोरता को प्रवेश न होने दें। सदैव दूसरे की बजाय अपने अवगुण दोषों पर ध्यान देते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस ब्रम्हांड का निर्माण ही शून्य मूल विकार से हुआ है। विकृति इसका स्वभाव है। मगर इसमें आत्मा जो इसका संचालन कर रही है। वह इस ब्रम्हांड की उत्पति नही है, न ही वह विकृत स्वाभाव वाली है। उसका संबंध सीधे परमात्मा से है, उसी का अंश है। ब्रम्हांड की इस विकृत लीला को देखने के लिए इसने इसमें प्रवेश किया है। मगर इसमें प्रवेश करते ही वह अपने स्वरूप को विस्मृत कर देती है। सदगुरू परमात्मा का स्वरूप बनकर यही समझाने तथा उसे इस माया से मुक्त करने के लिए सदुपदेश कर उसे अपने मुकाम पहुंचने का प्रयास करते है । इस अवसर पर अवनीत सक्सेना मघु बंसल पारस गुप्ता जी एस कोठियार अरुण अग्रवाल सीमा विशनोई नरेश सक्सेना राजीव अग्रवाल मल्लू विकास ममगाईं विशाल अग्रवाल आदि रहे ।